मुहम्मद उमर कैरानवी: 2015

Monday, September 7, 2015

जाकिर नायक परिचय एवं विवादों पर एक दृष्टि

भारतीय इस्लामी विद्वान और तुलनात्मक धर्म विशेषज्ञ डॉ. जाकिर अब्‍दुल करीम नायक दूसरे धर्मों से मुनाजिरों के हवाले से पहचाने जाते हैं, काम के लिहाज  से एम. बी. बी. एस. डाक्‍टर हैं । स्‍वयं को कुरआन के मुताबिक मुस्लिम कहते हैं लेकिन उनके विरोधियों का कहना है कि नायक अहले हदीस  हैं , अफ्रीका के प्रसिद्ध  धर्म प्रचारक अहमद दीदात को गुरू मानते हैं, 1991 से इस्‍लाम के प्रचार को पूरी दिलचस्‍पी के साथ अपना लिया,  हिन्‍दू, जैन, इसाई आदि से Debate मुनाजरे मशहूर हुए , बहुत से लोंगो ने नायक के द्वारा इस्‍लाम धर्म अपनाया, मुम्‍बई में  पैदा होने वाले नायक इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं और दुनिया के प्रसिद्ध गैर अरबी भाषी इस्लामी विद्वानों में से एक हैं. इस्‍लामी चैनल पीस टीवी के नाम से चला रहे हैं,   हाजिर जवाबी और मुनाजरों में दस्‍तरस रखते हैं, विलियम केम्‍पबेल से मुनाजिरे के कारण अंतरराष्ट्रीय वक्ता के रूप में प्रसिद्ध हुए, उर्दू-हिंदी मराठी स्‍टाइल में बोलते हैं, अरूण शौरी, योगी आदित्‍यानाथ, तस्लीमा नसरीन जैसी बडी कई धार्मिक और राजनितिक हस्तियों को नायक चुनौती दे चुके हैं तो अपने को सुन्नि मोलवी से बना पंडित कहने वाले महिंद्रपाल और शिया से नास्तिक बना अली सीना जैसे दर्जन से अधिक उनको चुनौती दे रहे हैं । गुरू रामपाल ने तो बहस का झूटा इशतहार तक टीवी पर चलवा दिया था,  अंतरराष्ट्रीय वक्ता के रूप में प्रसिद्ध लगभग 50 वर्षीय जाकिर नायक की पत्नि फरहत नायक, बेटा फारिक नायक और बेटी रूशदा नायक भी प्रचारकों की दुनिया में अपनी पहचान बना चुके।
किसी मुद्दे या ग़लत फेहमी दूर दूर करने के लिए तैयारी के साथ पब्लिक के सामने जो बात करते हैं वो पीस टीवी के कैमरों द्वारा रिकोर्ड करके प्रसारित करदी जाती है । फिर वो वीडियोज समर्थकों के द्वारा ऑनलाइन अपलोड करदी जाती जिसे पसंद करने वाले अपनी भाषाओं में अनुवाद करके प्रकाशित कर लेते हैं।  ऐसे ही तैयार हुई जाकिर नायक की 5 हिंदी पुस्‍तकें खाकसार कैरानवी द्वारा आनलाइन उपलब्‍ध कर दी गयी हैं
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Mansahaar uchit ya anuchit

Islam Aur Hindu Dharm Me Samantae (Hindi)

Islam ke Vishay Main Gher Musalimon ke Sawalon ke Jawabat - (Hindi) - (PB)

Islam atankwad ya bhaichaara

Islam mein aurton ke adhikar


डॉ. जाकिर नाइक को सऊदी अरब के नए शाह ने इस्लाम धर्म के प्रति अभूतपूर्व योगदान के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक से सम्मानित किया..मालूम हो के इस से पहले  अवॉर्ड इस्लाम के मशहूर उलेमा मौलाना अबुल हसन नदवी को 1980 मे दिया गया था.
शाह सलमान ने शानदार पुरस्कार समारोह में किंग फैसल अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (केएफआईपी) इस्लाम की गैरमामूली सेवा के लिये प्रदान किया. यह पुरस्कार नोबेल पुरस्कार के जैसा मुस्लिम दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। पांच श्रेणियों - इस्लाम की सेवा, इस्लामिक अध्ययन, अरबी भाषा एवं साहित्य, चिकित्सा और विज्ञान में दिए जाते हैं. हर पुरस्कार के साथ विजेता की उपलब्धियों से जुड़ा अरबी का एक हस्तलिखित प्रमाणपत्र, एक 24 कैरेट 200 ग्राम सोने का स्मारक पदक और 2,00,000 डॉलर की पुरस्कार राशि दी जाती है.
पुरस्कार समारोह में देश के मंत्री, शाही परिवार के सदस्य, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, शिक्षाविद् और प्रतिष्ठित विद्वान मौजूद थे. नाइक ने समारोह के दौरान दिखाई गई एक वीडियो बायोग्राफी में कहा था कि  'इस्लाम एकमात्र धर्म है जो पूरी मानवता के लिए शांति ला सकता है। .वर्तमान में जो यह 1 करोड 32 लाख रूपए से अधिक की राशि होती है यह जाकिर नायक द्वारा पीस टीवी नेटवर्क के वक्फ में दे दान कर दी गयी।
on flipkart इस्‍लामपर 40 आपत्तियों और उनके प्रमाण सिद्ध जवाबात
Islam Par 40 Aapattiyan Aur Unke Praman Siddh Jawabaat 
डॉ जाकिर नायक इस्लामी दृष्टिकोण स्पष्ट करने के लिए कारण, तर्क और वैज्ञानिक तथ्यों के साथ साथ साथ अपनी अच्छी याददाश्त से कुरआन, प्रामाणिक हदीस और अन्य धार्मिक ग्रंथों का उपयोग  हवालों के साथ करके, इस्लाम के बारे में दूसरों की गलतफहमी को दूर करना चाहते हैं । वार्ता के बाद दर्शकों से उत्पन्न चुनौतीपूर्ण प्रश्‍नों को समझाने के दिए गए उनके उत्‍तर बेहद पसंद किए जाते हैं।
ज़ाकिर नायक अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, आस्‍टे्लिया, चाईना सहित 30 से अधिक देशों में प्रोगराम में अपने फन का मुजाहिरा लाखों की भीड के सामने कर चुके हैं।

इंग्लिश समाचार पत्र 'इंडियन एक्‍सप्रेस'  ने हिन्‍दुस्‍तान के करोंडों मुसलमानों में से टाप 100 ताकतवर मुसलमानों 2009 की लिस्‍ट में 82 और 2010 ई. में 89 नम्‍बर पर रखा था, 2009 के हिंदुस्‍तान के टाप के दस आध्यात्मिक गुरुओं में उनको तीसरा नम्‍बर दिया गया तो 2010 में सबसे ऊपर जाकिर नायक का नाम दिया गया।

डॉ विलियम कैम्पबेल के साथ उनका सार्वजनिक संवाद, 1 अप्रैल 2000 को "कुरआन और विज्ञान के प्रकाश में बाईबिल" विषय पर शिकागो, संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित एक प्रोगराम में हुआ, इस संवाद को मुस्लिम दुनिया में बेहद पसंद किया गया, प्रमुख हिंदू गुरू श्री श्री रवि शंकर के साथ उनकी आपसी बातचीत, "पवित्र ग्रंथों के प्रकाश में हिंदू धर्म और इस्लाम में ईश्वर की अवधारणा' को विषय को देखते हुए दोनों धर्मों के मानने वालों में पसंद किया गया । यह धार्मिक गुरूओं से बातचीत ऑनलाइन मक़बूल होने के पश्चात अब उर्दू,हिंदी और इंग्लिश में छप भी चुकी हैं।

“Deedat Plus”
शेख अहमद दीदात इस्लाम और तुलनात्मक धर्म पर विश्व प्रसिद्ध वक्ता ने 1994 में इस्‍लाम की दावत और तुलनात्मक धर्म पर नायक के अध्ययन पर एवार्ड देते हुए जाकिर नायक को "दीदात प्लस" कहते हुए कहा कि ', अल्‍हम्‍दु लिल्‍लाह,बेटा जितना काम तुमने 4 साल में कर दिखाया इतना काम करने में मुझे 40 साल लग गए थे'

दुबई के शासक के प्रधानमंत्री ने 29 जुलाई 2013 को डॉ जाकिर नाइक को प्रतिष्ठित दुबई अंतर्राष्ट्रीय पवित्र कुरआन एवार्ड  अर्थात  '2013 का इस्लामी व्यक्तित्व' और मीडिया, शिक्षा और परोपकार में विश्व स्तर पर इस्लाम और मुसलमानों के लिए काम पर प्रशस्ति पत्र और 272,000 अमेरिकन डालर दिए गए जिन्‍हें जाकिर नायक ने पीस टीवी नेटवर्क में देकर उससे वक़्फ़ फंड शुरू करवा दिया।

मलेशिया के बादशाह द्वारा मलेशिया के सर्वोच्च पुरस्कार अर्थात गणमान्य अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व 2013 अवार्ड नायक की बेमिसाल इस्‍लाम की खिदमत और इस्‍लाम को मजबूती देने के लिए दिया गया साथ ही मलेशिया के प्रधानमंत्री द्वारा हस्ताक्षर किया गया प्रशस्ति पत्र भी 5 नवंबर 2013 में दिया गया था।

शारजाह के शासक द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम के लिए स्वैच्छिक सेवा के लिए वर्ष 2013 के लिए डॉ जाकिर नाइक को 16 जनवरी 2014 को 'स्वैच्छिक कार्य के लिए शारजाह पुरस्कार 2013' दिया गया

गाम्बिया गणराज्य के राष्ट्रपति 15 अक्टूबर 2014 को 'गाम्बिया गणराज्य के राष्ट्रीय आदेश के कमांडर का प्रतीक चिन्ह 2015' सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार से डॉ जाकिर नाइक को सम्मानित किया साथ ही गाम्बिया के विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा, उनके उत्कृष्ट योगदान और ज्ञान के प्रसार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामुदायिक सेवाओं के अनुसंधान और प्रसव को बढ़ावा देने के लिए डाक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी

फेसबुक पेज पर जून 2015 तक की स्थिति के अनुसार, डॉ जाकिर नाईक पेज को दो वर्ष में अल्‍हम्‍दु लिल्‍लाह 8 लाख लाइक मिले, यह न केवल धर्म पर अंग्रेजी में बोलने वाले मुसलमानों के बीच सबसे अधिक में से एक है बल्कि किसी भी अंग्रेजी वक्ता के बीच सबसे अधिक पसंद किया जा रहा  है, यूट्यूब उपाध्यक्ष, टॉम पिकेट, ने बताया है कि यूटयूब पर जाकिर नायक पर लाइक यानि पसंद ओर लोकप्रियता बहुत अच्‍छी है।

डॉ जाकिर नाइक दुनिया के 200 से अधिक देशों में कई अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनलों पर नियमित रूप से दिखाई देते हैं। नियमित रूप से टीवी और रेडियो साक्षात्कार के लिए उन्‍हें आमंत्रित किया जाता है। संवाद, बहस और संगोष्ठियों के एक सौ से अधिक डीवीडी उपलब्ध हैं। इस्लाम और तुलनात्मक धर्म पर कई किताबें भी लिखी है।
दूसरों तक आसानी से इस्‍लाम का पैगाम पहुंचाने के लिए पीस टीवी नेटवर्क डॉ जाकिर नायक की सोच का नतीजा है, जनवरी 2006 में पीस टीवी अंग्रेजी में भी शुरू किया गया, 100 मिलियन से अधिक दर्शकों की संख्या के साथ, वर्तमान में दुनिया में 'किसी भी धार्मिक' उपग्रह टीवी चैनल पर यह सबसे अधिक दर्शेकों की संख्‍या हैं जिनमें 25% गैर-मुसलमान हैं, इस सफलता को देखते हुए 2009 में पीस टीवी उर्दू  और 2011 में बंग्‍ला भाषा में शुभारंभ किया गया, 2015 के अंत तक चीनी भाषा सहित विश्‍व की प्रमुख भाषाओ में भी पीस टीवी अपनी सेवा आरम्‍भ कर रहा है । परदे बारे में नायक का एक सवाल के उत्‍तर में कहना था कि तीन सैंकिंड से अधिक महिला का चहरा पीस टी वी पर नहीं दिया जाता जिससे पहली नजर माफ वाली बात पर अमल हो सके।

पीस टीवी का लाइसेंस अरब अमीरात से लिया गया था भारत में इसकी सफलताओं को देखते हुए विरोधियों ने इस पर पाबंदियां लगवायी आज केबल आप्रेटर गंदा या नंगा चैनल दिखा देता है मगर पीस टीवी के लिए बताया जाता है कि डी एम की मंजूरी जरूरी है ,पीस कान्‍फ्रेंस भी बेहद कामयाबी के साथ जारी थी कि उसको भी विरोधियों ने बंद करवादिया अब इधर हालत यह है कि भारत में सभी तरह के लोग अपने प्रोगराम कर सकते हैं लेकिन जाकिर नायक कोई प्रोगराम नहीं कर सकता, वैसे इसके भी अच्‍छे नतीजे रहे कि जाकिर नायक भारत के लिए काफी काम कर चुके अब जरूरत थी विश्‍व स्‍तर पर काम करने की तो उसका मौका पा‍बंदियों से मिल गया।

पीस टीवी पर हो jरही  पाबंदियों को देखते हुए पीस मोबाइल लांच किया गया है जिस में मुसलमान की जरूरतों का पूरा खयाल रखा गया है ।


आर्य समाजी महेंद्रपाल द्वारा चैलंज पर दोनों ओर के समर्थर्कों का विवाद डा. मुहम्मद असलम कासमी की पुस्‍तक
 "महेन्द्रपाल आर्य बनाम कथित महबूब अली" के द्वारा उठाई गयी आपत्तियों की विश्लेषणात्मक समीक्षा
से आसानी से समझा जा सकता है, असलम कासमी लिखते हैं 
श्रीमान महेंद्रपाल जी के द्वारा इन्टरनेट पर एक वीडियो डाली गयी है जिसका शीर्षक है महेंन्द्रपाल ने डाक्टर ज़ाकिर नायक के उस्ताद अब्दुल्लाह तारिक को हराया।
पहली बात तो यह है कि उक्त विडियो जिस प्रोग्राम की है वह कोई शास्त्रार्थ का प्रोगराम नहीं था अपितु आपसी भाईचारे पर आधारित प्रोग्राम था और अगर महेंद्रपाल जी उसे शास्त्रार्थ ही का प्रोग्राम मानते हैं तो फिर बताएं उसमें जज किसे नियुक्त किया गया था, उसमें अधिक संख्या महेन्द्रपाल जी के अनुयाईयों की थी उन्होंने ही प्रोग्राम का आयोजन किया था, और अब्दुल्लाह तारिक को बतौर अतिथि बुलाया गया था।
अब्दुल्लाह तारिक रियासत रामपुर के रहने वाले मशहूर इस्लामी स्कालर हैं उनके प्रोग्राम पीस टीवी से प्रसारित  होते रहते हैं। परन्तु जाक़िर नायक से उनका कोई गुरू-शिषय का संबंध नहीं है बल्कि उनकी जाक़िर नायक से एक दो मुलाकातों के अलावा अन्य कोई राबता नहीं है। ऐसे में उनको ज़ाकिर नायक का उस्ताद लिखना केवल अज्ञानता है।
जहाँ तक उनको हराने की बात है। नेट पर मौजूद विडियो में ऐसी कोई बात नहीं दिखती। महेंद्रपाल और अब्दुल्लाह तारिक की बातचीत की इस विडियो को देखकर लगता है कि महेंद्रपाल सच्चाई को जानने समझने और सही बात को मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है बल्कि आक्रमक अंदाज में बेवजह चीख रहे हैं। जबकि अब्दुल्लाह तारिक सभ्यता और शाइस्तगी से बात समझाने का प्रयास कर रहे हैं।

दूसरी बात यह कि आर्य समाजी महेंद्रपाल के समर्थकों को पता नहीं कि नेट में उपलब्‍ध विडियो में पंडित जी स्‍वयं यह बता रहे हैं कि जाकिर नायक ने पंडित महिंद्रपाल को 2004 में सम्‍मेलन में मुम्‍बई में सादर आमंत्रित किया था मगर पंडित जी नहीं पहुंचे,
https://youtu.be/ji8WMvE4oBQ
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शियाओं से विवाद
जाकिर नायक की शिया मुफती से टी वी पर बहस सुनने से पता चलता है कि वो देवलबंद, जमाते इस्‍लामी, अहले हदीस आदि से फतवा मंगा चुके, उन फतवों में उन्‍हें यह जवाब दिया गया कि वो यजीद के लिए दुआओं के अल्‍फाज कह सकते हैं, किसी ने मु‍स्‍तहिब कहा है मना किसी ने नहीं किया, फतवों को देख कर नायक का कहना है कि वो आलिमों को कहना मानेंगे, जिन्‍होंने मना नहीं किया, उनका इस बातचीत में यह भी कहना था कि हदीस के मुताबिक जो उस जंग में शरीक हुआ वो जन्‍नती है, यजीद के बारे में गवाही है कि वो उस जंग में कमांडर थे,  अर्थात हजूर की बशारत के मुताबिक जन्‍नती हुए, इस लिए नाम के साथ दुआओं के अलफाज के हकदार हैं,  इमाम गजाली और बुखारी शरीफ की शरह लिखने वाले हाफिज असकलानी से भी उन्‍होंने बताया कि उनका कहना है कि यजीद मुसलमान था, यह भी कहा कि हम जब मुसलमानों के लिए दुआ करते हैं तो सबके साथ उसमें वो भी शरीक होते हैं, यह भी कहा कि वो हजरत हुसैन को पूरी इज्‍जत देते हैं जिसने उनका कतल किया उसको बुरा समझते हैं, लेकिन उस समय यजीद या उस समय की पूरी मुस्लिम फौज को बुरा कहना गलत मानते हैं साथ ही यह भी कहा कि हदीस के मुताबिक अगर हम किसी गलत आदमी के लिए दुआ करते हैं तो वो लगती नहीं और अगर सही आदमी को लानत भेजते हैं तो वो वापस आती है इस लिए लानत भेजने वालों को गोर करने की जरूरत है कि वो सही या गलत पर लानत भेज रहे हैं, उनका यह भी कहना था कि शिया हजरात मुझे बदनाम करने का कुछ बहाना ढूंडते रहते हैं जबकि वो शिया-सुन्‍नी इखतलाफी बातों से बचते रहते हैं कि अगर वो कुछ कहेंगे तो शिया हजरात को जवाब देना में मुश्किल होगी
  • उपरोक्‍त टीवी बहस में इस बात की ओर इशारा है कि इमाम गजाली फरमाते हैं '' यजीद की तरफ से हजरत हुसैन (रजिअल्‍लाह अन्‍हू) को कतल करना, या उनके कतल करने का हुकुम देना या उनके कतल पर राजी होना, तीनों बातें दुरूस्‍त नहीं और जब यह बातें यजीद के मुताल्लिक साबित ही नहीं तो फिर यह भी जायज नहीं कि उसके मुताल्लिक ऐसी बदगुमानी रखी जाए क्‍यूंकि कुरआन मजीद में अल्‍लाह का फरमान है कि मुसलमान के मुताल्लिक बदगुमानी हराम है, ( बहवाला मिनहाजु सुन्‍नत, जिल्‍द 4, पृष्‍ठ 5455)
 शायद इन सब बातों को देखते हुए ही रामपुर के अब्‍दुल्‍लाह तारिक के साथ मौलाना सलमान नदवी भी नायक के पीस टी वी चैनल से जुड चुके हैं, नए मुस्‍लमान हुई कई विश्‍व में नाम कमा चुकी हस्तियां पहले ही चैनल से जुडे हुए हैं। पब्लिक में जो शंका थी वो सऊदी बादशाह द्वारा इस्‍लाम की गेर मामूली खिदमात पर किंग फेसल इनाम 2015 मिलने से दूर हो गयी, यह किंग फेसल इनाम अली मियां को भी मिल चुका है।

تاریخ کی ایک مشہور کتاب "تاریخ ابن خلکان" المعروف " وفيات الاعيان وانباء الزمان" میں امام غزالی فرماتے ہیں :
یزید کی طرف سے حضرت حسین (رضی اللہ عنہ) کو قتل کرنا ، یا ان کے قتل کرنے کا حکم دینا یا ان کے قتل پر راضی ہونا ۔۔۔ تینوں باتیں درست نہیں ۔ اور جب یہ باتیں یزید کے متعلق ثابت ہی نہیں تو پھر یہ بھی جائز نہیں کہ اس کے متعلق ایسی بد گمانی رکھی جائے کیونکہ قرآن مجید میں اللہ کا فرمان ہے کہ مسلمان کے متعلق بدگمانی حرام ہے ۔
( بحوالہ : وفیات الاعیان ، جلد:2 ، صفحہ:450 )

https://www.youtube.com/watch?v=hCKBzKB61Bo


देवबंदी फतवे को पढने से पता चलता है कि उन्‍होंने जाकिर नायक से खबरदार रहने के लिए कहा है क्‍यूंकि उनकी शिक्षा किसी धार्मिक संस्‍था मदरसे से नहीं हुई इस लिए खता की गुन्‍जाईश है,  जबकि समर्थकों की बातचीत से पता चलता है कि हर एक से खबरदार रहने की जरूरत है और जाकिर नायक से खबरदार रहना आसान है कि वो अपनी बात की दलील में जो कुरआन और हदीस का हवाला देते हैं उनके नंबर तक अपनी शान्‍दार याददाश्‍त से देते हैं जिसे हम कन्‍फर्म कर सकते हैं ।
दूसरा एतराज उन फतवों में लिबास पर मिलता है जिसके बारे में अक्‍सर दावते इस्‍लाम का काम करने वालों का कहना होता है कि आज यह लिबास यहूदियों का नहीं बलिक सभ्‍य और शिक्षित की पहचान बन चुका है, कुर्ता पाजामा में वो अर्थात सैंकडों मुल्‍कों में प्रसारित टीवी पर हमें बात सुनने के योग्‍य ही नहीं समझेंगे इस लिए लिबास पर थोडा नरम रवैया रखा गया है

हाजिर जवाबी में मशहूर जाकिर नायक को कुछ सवालों पर चुप्‍पी मारनी पडी होगी जैसे कि पीस टीवी पर नाचने जैसे प्रोगराम पर,, और क्‍या कौम के पैसे से तबलची म्‍यूजिशियन, केमरामेन को तन्‍खाह दी सकती या नहीं के सवाल पर ? हिंदू धर्म ग्रंथों महामद जैसे शब्‍दों को मुहम्‍मद सल्‍ल. बताने पर मैंने भी जवाब पाने की बहुत कोशशि की मगर उनके समर्थकों से भी उत्‍तर ना पा सका

डाक्‍टर जाकिर नायक के विरोध में  ''डाक्‍टर जाकिर नायक पर एक नजर" और ''हकीकत जाकिर नायक'' जैसी कई किताबें में बाजार में आ चुकी हैं मगर समझना यह भी है कि ऐसी कौन सी धार्मिक हस्ति हुई जिस पर बाल की खाल निकाल के किताबें ना छाप दी गयी हों, जाकिर नायक पर भी सिलसिला छिड गया है चलता रहेगा , बस हमें खबरदार रहना है।

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Thursday, March 19, 2015

न्यु एज इस्लाम डॉट कॉम पर लगातार हमला

प्रिय पाठकों,  लगभग पांच साल पहले हमने जब अपने सफ़र की शुरुआत की, तब से हमारे ऊपर हमले होते रहे हैं। सबसे पहले हमारी साइट को हैक करने की लगातार कोशिश की गई। इसके बाद हमारे न्यूज़लेटर मेलिंग सिस्टम (newsletter mailing system) पर अनगिनत बार हमले किए गए। एक बार हमारी साइट सर्वर (server) से ऐसे समय में डिलीट कर दी गयी जब हम ऐसे हालात का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे। उस समय हमारे पास कोई बैकअप नहीं था। हालांकि हमने इसे फिर बनाया और तब से अब तक ये जारी हैं। 

सुल्तान शाहीन, एडिटर, न्यु एज इस्लाम
20 दिसम्बर 2012
एक बार हमने साइट को सुरक्षा प्रदान की, इसके बावजूद ऑनलाइन (online) जो कुछ भी है, पूरी तरह सुरक्षित नहीं है, डोमेन रजिस्ट्रार (domain registrars) और वेब होस्ट (webhosts) को शिकायत प्राप्त होनी शुरू हो गईं। नफरत फैलाने से लेकर स्पैमिंग (Spamming) तक की हर तरह की शिकायत मिलने लगीं। एक बार तो डोमेन रजिस्ट्रार ने हमारे डोमेन नेम को बिना किसी पूर्व सूचना के ही निलंबित कर दिया। और इंटरनेट पर इस निलंबन का प्रचार प्रसार होने में कुछ दिन लग जाते हैं, हुआ ये कि दुनिया के कुछ हिस्सों में कंप्यूटर पर NewAgeIslam.com साइट खुलती थी, और कुछ हिस्सों में ये लिख कर आता कि ये साइट मौजूद नहीं है। एक दो दिनों तक हमें कुछ पता नहीं चला कि हमारे साथ क्या गलत हो रहा है। हम एक डोमेन रजिस्ट्रार से दूसरे डोमेन रजिस्ट्रार तक और एक वेब होस्ट से दूसरे वेब होस्ट को स्थानांतरित होते रहे।
हमारे साथ ये मामला सामने आया। हिंदुस्तान से बाहर भी हमारा पीछा किया गया। मैंने अपना डोमेन नेम और वेब होस्टिंग दोनों को अमेरिका स्थानांतरित कर दिया। लेकिन हमारे दुश्मन अधिक मजबूत हैं। हर एक देश के व्यापारी सिर्फ पैसा कमाने से मतलब रखते हैं, उनके पास इतना भी वक़्त नहीं कि वो उन न्यूज़ लेटर पर एक नज़र डालें जो उनके पास हमारी तरफ से नफरत को बढ़ावा देने और स्पैमिंग के सुबूत के तौर पर भेजे जाते हैं। अब मेरे वेब होस्ट के द्वारा मुझे ये नोटिस मिली है कि साइट को निलंबित किया जा चुका है और ये किसी भी समय हटाई जा सकता है। शिकायतों का एक और सेट। ये नोटिस साइट के निलंबन के 15 दिनों के बाद मेरे इन बॉक्स (inbox) में आई। इस दौरान में बहुत गुस्से में था और ये समझने नहीं पा रहा था कि इस साइट के साथ क्या हो रहा है। एक हफ्ते से अधिक मैं न्यूज़ लेटर नहीं भेज पाया। हमारा मेल सर्वर काम नहीं कर रहा है। दूसरे सिस्टम अभी तक चल रहे हैं। अपना निजी सर्वर रखना और उसका प्रबंध खुद से करना ही इसका हल है। लेकिन एक निजी सर्वर खरीदना जिसे हर दिन लाखों हिट मिलें उसका प्रबंधन कर पाना आसान नहीं है, इसके लिए पेशवरों का समूह चाहिए, और जो साइट मुश्किल से अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए निर्वाह कर रही हो, ये उसके लिए बहुत मुश्किल है। हम इसके दूसरे समाधानों के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन मैं आपको इस बात का आश्वासन दे सकता हूँ कि अगर हम अचानक से ऑफ़लाइन (offline) चले भी गए तो इंशाअलाह हम वापस आनलाइन होंगे। मैंने सोचा कि मुझे आप लोगों को इस सम्भावना की चेतावनी पहले ही दे देनी चाहिए। इसलिए कि मैं ऐसा कर सकता हूँ। अल्लाह ने हमारी मदद हमेशा की है। वो फिर हमारी मदद करेगा। मुझे इस बात का यक़ीन है। कृपया हमारे साथ जरूर जुड़े रहें, और साइट के अचानक बंद हो जाने की हालत में अपने विश्वास के अनुसार हमारे लिए दुआ करें या हमें शुभकामनाएं भेजें।
आप लोगों को परिप्रेक्ष्य देने के लिए के लिए मैं अपने उस भाषण का कुछ हिस्सा यहाँ पेश कर रहा हूँ जिसे मैंने संयुक्त राष्ट्र (जिनेवा) में एक समानांतर बैठक में इंटरनेट गवर्नेंस और साइबर सिक्योरेटी के विषय पर दिया था।
लेकिन, विश्व इंटरनेट गवर्नेंस की समस्या केवल सरकारों ही के लिए महत्व नहीं रखता, बल्कि आम उपभोक्ता और वेबसाइटों के मालिकों को भी कई जोखिमों और समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। चूंकि चार सालों से मैं खुद एक वेबसाइट चला रहा हूँ इसलिए इस संबंध में मैं अपना अनुभव बताते हुए यह कहने में सही हूं कि हम लोग बहुत ही नाजुक जीवन जी रहे हैं। मेरी तरह बहुत से ऐसे ब्लागर्स और वेबसाइट मैनेजर्स हैं जो विभिन्न मुद्दों पर अपना पक्ष रखते हैं, इसलिए कई लोग इनके विरोधी नहीं बल्कि दुश्मन बन जाते हैं, और उनकी वेबसाइटों को समाप्त करने की इच्छा रखते हैं। लेकिन आखिर उनके लिए ऐसा करना इतना आसान क्यों होता है? धमकियाँ तो बहुत से लोगों की तरफ से आती रहती हैं। न्यु एज इस्लाम को कई बार इसके दुश्मनों ने हैक किया है और इसको खत्म करना चाहा है। हमारे दुश्मन लोग, शायद जिहादी लोग, विशेष रूप से हमारे न्यूज़लेटर के पीछे पड़े हुए हैं जो हर दिन लगभग साढ़े तीन लाख सबस्क्राइबर्स के पास पहुंचता है। हमारे न्यूज़लेटर के सबस्क्राइबर्स ईमेल आईडी कभी भी डिलीट की जा सकती है, जैसा कि न्यु एज इस्लाम को एक ही दिन में तीन बार इस स्थिति का सामना करना पड़ा है। ये हैं हमारी सुरक्षा से जुड़ी समस्यां। जिनसे निपटने के लिए हमें सही प्रक्रिया और संसाधन का चयन करना होगा।
इसके अलावा, हमें कुछ ऐसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है, जिनका संबंध प्रत्यक्ष रूप से इंटरनेट गवर्नेंस से है। न्यु एज इस्लाम को इस तरह की कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, हमारे डोमेन नेम को किसी नोटिस या जांच के बिना निलंबित किया जा सकता है, और ऐसा उस वक्त होता है जब कोई व्यक्ति डोमेन रजिस्ट्रार को बिल्कुल झूठी शिकायत भेज देता है। इसी तरह वेब साइट होस्ट हमारे संचालन को निलंबित कर सकता है, जैसा कि न्यु एज इस्लाम कई बार इसकी चपेट में आ गया है,  और इसके पीछे इसी प्रकार के बिल्कुल झूठे और निराधार आरोप थे। दरअसल डोमेन रजिस्ट्रार या वेबसाइट होस्ट का कहना है कि वो शुद्ध व्यापारिक संगठन हैं, इसलिए वो अनावश्यक बातों में नहीं पड़ना चाहते है। वो ये भी कहते हैं कि चूंकि उनके पास ऐसे लोग नहीं हैं जो शिकायतों की समीक्षा कर सकें, इसलिए उनके लिए ज्यादा आसान काम है कि जब भी कोई शिकायत दर्ज हो तो वो इस पर एक्शन लेते हुए वेबसाइट को बंद कर दे। इसलिए जब मैंने अपने डोमेन रजिस्ट्रार से कहा कि वह कम से कम शिकायत को एक बार पढ़ लें जो मुझे उन्होंने बिना पढ़े फॉरवर्ड कर दिया है, तो उन्होंने बड़ी सादगी से जवाब दिया कि ''मेरे पास न तो तुमसे बहस करने का समय है और न ही अनावश्यक मेल पढ़ने का। लेकिन कुछ दिनों के लिए आपका डोमेन बहाल कर रहा हूँ, लेकिन आप अपना डोमेन किसी डोमेन रजिस्टर में अभी इसी समय स्थानांतरिक करवा लो'।  मैंने ऐसा ही किया, लेकिन मेरी वेबसाइट कई सप्ताह तक प्रभावित रही।
लेकिन जब मैंने इस बारे में ठंडे दिमाग से सोचा, तो मैंने पाया कि रजिस्ट्रार का इसमें दोष नहीं है। क्योंकि अगर आप इसके अर्थशास्त्र पर नज़र डालें, तो आपको पता चलेगा कि रजिस्ट्रार की बात में दम है। वो मुझसे डोमेन नेम के बदले 12 से 15 डॉलर सालाना लेता है। यानी हर साल मुझसे 5 से 7 डॉलर का लाभ प्राप्त करता है। अब आप ही सोचिए कि वह व्यक्ति मुझसे बहस करके कीमती समय भला क्यों गंवाएगा या मेरी वेबसाइट के खिलाफ दर्ज शिकायतों की जाँच करा अपने संसाधनों को क्यों बर्बाद करेगा और इस तरह वो अपने व्यापार को दांव पर किस लिए लगाएगा? उस व्यक्ति का इसमें बिल्कुल भी कोई लाभ नहीं है, जबकि व्यापार हमेशा लाभ और हानि के सरल सिद्धांत पर चलता है। इसलिए, मुझे उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र की कमेटियाँ जब कभी भी इंटरनेट गवर्नेंस के बड़े मुद्दों पर चर्चा करेंगी, तो इन मुद्दों पर भी अवश्य ध्यान देंगी जो लाखों इंटरनेट उपयोगकर्ताओं और वेबसाइट मालिकों से संबंध रखते हैं। बहरहाल, ये हम नेटीज़ंस (इंटरनेट का उपयोग करने वाले) हैं जिन्होंने इंटरनेट को सूचना राजमार्ग (इंफार्मेशन हाईवे) बना रखा है। इसलिए हमें खुद सुरक्षा की जरूरत है।

Sunday, March 8, 2015

कश्‍ती-ए-नूह(मनु) को पुरातत्ववेत्ताओं ने आखिर ख़ोज ही निकाला

लगभग 2300 ईसा पूर्व अल्लाह ने इन्सानों को गुमराह होने से बचाने के लिए अपने

पैगम्बरों (खुदा का पैग़ाम इन्सानों तक पहूंचाने वाले) को दुनिया के हर हिस्से में भेजा, जिनका ज़िक्र आज भी उस इलाके के लोग करते आ रहे हैं, इसी कडी में अल्लाह ने पैग़म्बर नूह(मनु) को लोगों को समझाने ओर सही राह दिखाने के लिए भेजा था,पैग़म्बर नूह अ. ने जिस कौम को समझाया वो शैतान के बहकावे या अपने लालच के कारण बहुत सारे बुतों की इबादत किया करते थे, और एक खुदा के मानने वालों को तरह तरह से परेशान करते थे, इस कौम के मुख्य देवता वद्द, सुआ, यगूत, ययूगा और नस्र थे। इन देवताओं के लिए ये लोग कुछ भी कर गुजरते थे, और इनकी इबादत करना ही अपने निजात का साधन मानते थे। इन देवताओं का ज़िक्र कुरआन में आया है।
आदिवासी,
हिन्दु, यहूदी ,ईसाई और मुसलमान ये सभी नूह की समान रूप से इज़्ज़त करते हैं । और इन सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों में इस महान पैग़म्बर का जिक्र है।
नूह की कश्‍ती (नौका) को खोजने और उसे देखने के लिए सदियों से लोग बैचेन रहे हैं। मगर इस किस्से के बारे में 1950 से पहले कोई सबूत ऐसा नही था जो ये तय कर सके कि वाकई नूह की जलप्रलय जैसी घटना पुथ्वी पर हुयी थी ।
सन 1950 ईसवी
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सन 1950 के आसपास एक अमेरिकी खोजी विमान जब तुर्की के आरारात पहाड के उपर से जासूसी के लिए फोटो लेते हुए गुजरा तो उसके कैमरे में इस सदी का एक बेहद महत्वपूर्ण चित्र कैद हो गया ।
सेना के वैज्ञानिकों ने जब आरारात पहाड पर एक बडी नाव जैसी संरचना देखी तो उस फोटो के अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक का कहना था कि ये सौ फीसदी नाव है। जो 300 क्यूबिट लम्बी थी । इस कस्ती के बारे में पता लगते ही वैज्ञानिकों में उत्साह दौड गया जो पुरातत्व की खोजों में लगे रहते हैं। और उन्हे लगा कि हो ना हो ये नूह की कस्ती के ही अवशेष हैं।
सन 1960 ईसवी
पूरी दुनिया में मशहूर और मोतबर मानी जानी वाली ‘लाईफ’ पत्रिका ने इस फोटो को सार्वजनिक रूप से अपने मुखपृष्ट पर छापा, और दावा किया कि ये आरारात पहाड पर नूह की कस्ती ही है। इसी साल अमेरिकी सेना के एक कैप्टन दुरूपिनार ने अरारात के उपर से लिए गए इस चित्र की सच्चाई जानने के लिए इस जगह का निरिक्षण करने का फैसला किया और उन्होने अपने दल के साथ इसे ढुंढ निकाला, मगर कैप्टन के दल ने यहां पर लगभग 36 घंटे बिताए और हल्की फुल्की सी खुदाई भी की,मगर इन्हे इस जगह पर चटटानों के अलावा कुछ ना मिला । निराश होकर कैप्टन वापस लौट आए और अपनी रिर्पोट पेश की । जिसके चलते एकबार फिर नूह की कश्‍ती को देखने की चाह रखने वाले लोगों में काफी निराशा हुयी ।

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सन 1977 ईसवी
कैप्टन की रिपोर्ट में बहुत सारी खामियां थी, इस वजह से कई वैज्ञानिकों ने इसे नही माना और इस घटना के 13 साल बाद एक अमेरिकी वैज्ञानिक रोन वाट ने नूह की कस्ती को खोजने के लिए एकबार फिर प्रयास करने की ठानी । रोन वाट ने पूर्वी तुर्की के इस इलाके में गहन शोध के लिए तुर्की सरकार से अनुमति मांगी, तुर्की सरकार ने उसे शोध करने की इजाजत दे दी ।
पहली यात्रा में ही वाट को अपना दावा सिद्ध करने के काफी सबूत मिले, इसके बाद तो वाट ने इस जगह की अहमियत को समझते हुए अत्याधुनिक वैज्ञानिक साजो सामान को इस्तेमाल करके अकाट्य सबूत जुटाने में कामयाबी हासिल की। इन्होनें जमीन के उपर रखकर जमीन के अन्दर के चित्र उतारने वाले रडारों और मेटल डिटैकटरों का इस्तेमाल किया और नूह की कस्ती के अन्दर की जानकारी के सबूत जुटाए।
इस परीक्षण के चैकानें वाले नतीजे निकले राडार और मेटल डिटेक्शन सर्वे में धातु और लकडी की बनी चीजों का एक खुबसूरत नक्शा सामने आया । और जमीन के उपर से बिना इस जगह को नुकसान पहूंचाए नाव होने के सबूत मिल गए।
और फिर रोन ने नक्शे को प्रमाणित करने के लिए ड्रिल तकनीक से नाव के अन्दर मौजूद धातु व लकडी के नमूनें प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की ।इन नमूनों को रोन वाट ने अमेरिका की प्रयोगशालाओं को भेजा जिनकी रिपोर्ट में ये बात सच पायी गयी कि वाकई तुर्की के इस अरारात नामक पहाड पर एक प्राचीन नाव दफन थी।
रोन वाट के लगभग 10 साल के सघन शोध के बाद दुनिया भर में इस पर चर्चा हुई और अन्ततः नूह की कस्ती की खोज को मान लिया गया।
दिसम्बर, सन 1986 ईसवी
तुर्की सरकार ने इस खोज के जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जिसमें अतातुर्क विश्वविद्यालय के भू वैज्ञानिक व पुरातत्व वैत्ता और तुर्की रक्षा विभाग के वैज्ञानिक व सरकार के कुछ उच्चाधिकारी शामिल थे ।
इस आयोग ने दिसम्बर 1986 ईसवी को रोन वाट की खोज की जांच की और अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश की, जिसमें इन्होनें इस खोज को सही माना, और अपनी सिफारिशें दी जिसमें इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने की सलाह सरकार को दी गयी थी

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तुर्की सरकार ने इस इलाके को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए और इस इलाके को कस्ती-ए-नूह राष्ट्रीय पार्क बना दिया गया। और इस जगह को आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया ।
नाव में धातु की रिबेट लगी हैं
रोन वाट ने जब मेटल डिटैक्शन तकनीक से परीक्षण किया तो उसे पता चला कि नाव को मजबूत बनाने के लिए इसके निर्माता ने मिस्रित धातुओं से बनी चीजों का बडे पैमाने पर इस्तेमाल किया था। ताकि नाव मजबूत बन सके और तूफान के थपेडों को झेल सकने में सक्षम हो जाए।
भूमि के उपर से लिए गए चित्रों की प्रमाणिकता के लिए वाट ने जमीन से ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल करके धातु की रिबटों को निकाला , जो लकडी के पटटों में लगी थी ।
प्रयोगशाला में जब इनका परीक्षण किया गया तो पता चला कि इस धातु को बनाने व इससे नाव के बनाने में इस्तेमाल होने वाली चीजें बनाने के लिए उच्च धातुकर्म तकनीकों का इस्तेमाल किया गया होगा ये नमूने अभी सुरक्षित हैं और पर्यटकों को इन्हे देखने की इजाज़त है
कश्ती की लकडी दुनिया में अनूठी
इस जगह की खुदाई के पश्चात रोन वाट ने नाव की डेक से कुछ लकडी के नमूनें लिए, जिन्हे प्रयोगशाला में जब परीक्षण के लिए भेजा गया तो चैंकाने वाले नतीजे निकले, इस नाव को बनाने में गोफर लकडी का इस्तेमाल किया गया है । और इसे दोनो और से लेमिनेटिड किया गया है ताकि ये नाव पानी के प्रभाव से मुक्त रह सके।
कमाल की बात ये है कि मूसा अ. पर उतरी अल्लाह की किताब तौरात के उत्पत्ति नामक पाठ में नूह की कश्ती बनाने के तरीके में ये ही लिखा है। जो वैज्ञानिकों ने पाया है । ये लकडी का नमूना अपने आप में पूरी दुनिया में अनूठे हैं क्योंकि इस तकनीक का इस्तेमाल पूरी दुनिया मंे कभी नही किया गया। और आज तक कोई दूसरा इस तरह का नमूना प्राप्त नही हुआ है। जो अपने आप में इस बात को साबित करता है कि नूह अ. को नाव बनाने की तकनीक सीधे अल्लाह से मिली जिसका जिक्र बाईबल और कुरआन दोनों में है।
कश्ती-ए-नूह के लंगर (एंकर स्टोन)
नूह की कश्ती मिल जाने के बाद वैज्ञानिकों ने इस इलाके के आसपास की जगहों की खोजबीन की और उस गांव को खोज निकाला जिस गांव में नूह और उनके साथी इस कहर के बाद बसे थे यह गांव आज भी ‘आठ लोगों का गांव’ के नाम से मशहूर है। वैज्ञानिकों को इस गांव में जगह जगह पर काफी बडे-बडे विशेष आकार में तराशे गए कुछ पत्थर मिले जिनके उपर एक सूराख किया गया था और उनके उपर एक खास तरह का क्रोस का निशान बना था। वैज्ञानिकों की पहले तो कुछ समझ में नही आया मगर जब उन्होनें माथापच्ची की तो पता चला कि इन पत्थरों का इस्तेमाल तूफान के वक्त नाव को स्थिर रखने के लिए लंगर (एंकर) के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इन पत्थरों को लंगर (एंकर) की तरह इस्तेमाल करने के लिए ही इनके उपर बडी सफाई से सूराख बनाए गए है। जो धातु के औजारों का इस्तेमाल किए बगैर नही बन सकते थे।
वैज्ञानिकों ने कम्पयूटर पर एक नाव का एक माडल बनाया जिसके नीचे इन्होनें इन पत्थरों को जिन्हें आजकल ‘एंकर स्टोन’ यानि लंगर पत्थर के नाम से पुकारा जाता है, को लगाया और ये पाया कि वाकई ये पत्थर कश्ती-ए-नूह को स्थिर रखने के लिए लंगर के रूप में इस्तेमाल किये गये थे।
कश्ती-ए-नूह की खोज ने अब दुनिया के सामने ये सबूत पेश कर दिए हैं कि वाकई नूह की कौम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ था। और इस कौम के बस कुछ ही लोग जिन्दा बचे थे ।
इस खोज के बाद अब उन बे सिर पैर की बातों का भी अन्त होना निश्चित है जो नूह अ. के बारे में लोगों ने अपने आप घड रखी हैं जिनका कोई ताल्लुक सच्चाई से नही है। और जो पूरी तरह विज्ञान और तर्क के विरूद्ध हैं ।
इस खोज से ये ही साबित होता है कि अल्लाह ने अपने बन्दे नूह अ. को गुमराह लोगों को समझाने के लिए भेजा था, और जब उन्होने दीन को नही अपनाया और ज़ुल्म करते रहे तो खुदा ने उन्हे बाढ के अज़ाब से हलाक कर दिया और इस किस्से से आने वाली नस्लें सबक लें, इसलिए इसके निशान बाकि रखे ।
अल्लाह कुरआन में फरमाता है ।
तो कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हे हमने विनष्ट कर दिया, इस हाल में कि वो ज़ालिम थी ।
तुफान-ए-नूह(मनु) के बारे में कुरआन क्या कहती है....
सूरः हूद ह्11» आयत 25 से 49
और हमने नूह को उसकी जाति वालों की ओर भेजा था, उसने अपनी जाति के लोगों से कहा '' मैं तुम्हें साफ सचेत करने वाला हूं।
यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी और की ‘इबादत’ न करो। मैं तुम्हारे बारे में एक दुखमय दिन की यातना से डरता हूं।
इस पर उसकी जाति के सरदार जिन्हों ने ‘कुफ्र’ किया था, कहने लगे, हमारी नज़र में तो तुम केवल हम जैसे इन्सान हो, और हम देखते हैं कि बस हमारे यहां के कुछ कमीने लोग सतही राय से तुम्हारे अनुयायी हुये हैं और हम तो अपने मुकाबले में तुम में कोई बडाई नही देखते ,बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते हैं ।
उसने कहाः हे मेरी जाति वालों ! सोचो तो सही, यदि मैं अपने रब के स्पष्ट प्रमाण पर हूं , और उसने मुझे अपने पास से दयालुता प्रदान की है, फिर उसे तुम्हारी आंखों से छिपा रखा, तो तुम न मानना चाहो जब भी क्या हम ज़बरदस्ती तुम्हारे सिर उसे चिपका दें ।
और हे मेरी जाति वालों ! मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नही मांगता । मेरा बदला तो बस अल्लाह के जिम्मे है, और मैं। उन लोगों को जो ‘ईमान’ ला चुके हैं, धुतकारने वाला भी नहीं हूं, वे तो अपने मालिक से मिलने वाले हैं , परन्तु मैं देखता हूं कि तुम लोग जिहालत कर रहे हो। और हे मेरी जाति वालों! यदि मैं उन्हे दुत्कार दूं तो अल्लाह के मुकाबले में कौन मेरी मदद करेगा ? तो क्या तुम सोचते नही ?
और मैं तुमसे ये नही कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने हैं और न मैं। गैब की ख़बर रखता हूं, और न मैं ये कहता हूं कि मैं तो फरिश्ता हूं! और न उन लोगों के प्रति ये कह सकता हूं जो तुम्हारी नज़र में तुच्छ हैं कि अल्लाह उन्हे कोई भलाई नही देगा। जो कुछ उनके मन में है, उसे अल्लाह अच्छी तरह जानता है यदि मैं ऐसा कहूं तब तो मैं ज़ालिमों में हूंगा।
उन्हों ने कहा-हे नूह ! तुम हम से झगड चुके और बहुत झगड चुके, अब तो जिस चीज की तुम हमें धमकी देते हो वही हम पर ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।
उस ने कहा- वह तो अल्लाह ही तुम पर लायेगा यदि चाहेगा, और तुम बच निकलने वाले नही हो ।
और यदि मैं तुम्हारा हित भी चाहूं तो मेरा हित चाहना तुम्हें कुछ भी फायदा नही पहूंचा सकता, यदि अल्लाह ही तुम्हें भटका देना चाहता हो । वही तुम्हारा रब है और उसी की ओर तुम्हे पलट कर जाना है। क्या ये लोग कहते हैं -इसने स्वयं इस कुरआन को गढ़ा है, तो मेरे अपराध की जिम्मेदारी मुझ पर है, और जो अपराध तुम कर रहे हो उसकी जिम्मेदारी से मैं बरी हूं। और नूह की ओर ‘वहय्’ भेजी गई कि जो लोग ईमान ला चुके उन के सिवा तुम्हारी जाति में अब कोई ईमान नही लायेगा, तो जो कुछ ये कर रहे हैं उस के लिए तुम दुखी न हो। और हमारी निगाहों के सामने और हमारी ‘वहय्’ के अनुसार एक नाव बनाओ, और उन लोगों के बारे में जिन्हों ने ज़ुल्म किया मुझ से कुछ न कहना। निश्चह ही वे डूबने वाले है। और वह नाव बनाने लगा, और जब कभी उस की जाति के सरदार उस के पास से गुजरते, वे उस की हंसी उड़ाते। उस ने कहा-यदि तुम मुझ पर हंसते हो, तो हम भी तुम पर हंस रहे है, जिस तरह तुम हंस रहे हो। जल्द ही तुम जान लोगे कि कौन है जिस पर वह यातना आती है जो उसे रूसवा कर देगी, और उस पर स्थायी यातना टूट पडती है। यहां तक कि जब हमारा आदेश आ गया और वह तनूर उबल पडा, तो हमने कहा-हर प्रकार के एक एक जोडा उस में चढा लो,(इसका मतलब ये है कि अपने पालतू पशुओं में से हर एक का एक एक जोडा ले लो ताकि दुबारा जिन्दगी की शुरूआत करने में आसानी हो) और अपने घर वालों को भी, सिवाय उसके जिस के बारे में बात तय हो चुकी थी ,और जो कोई ईमान लाया हो उसे भी ले लो। और बस थोडे ही लोग थे जो उसके साथ ईमान लाए थे। और नूह ने कहा ''सवार हो जाओ इस में ! अल्लाह के नाम से इसका चलना भी है और इस का ठहरना भी । निस्सन्देह मेरा रब बडा क्षमाशील और दया करने वाला है।''
और वह नाव उन्हे लिए पहाड़ जैसी ईंचीं लहरों के बीच चलने लगी, और नूह ने अपने बेटे को पुकारा-वह अलग था- हे मेरे बेटे ! हमारे साथ सवार हो जा, और ‘काफिरों’ के साथ न रह। उस ने कहा-मैं किसी पहाड़ की शरण ले लेता हूं, वह मुझे पानी से बचा लेगा। कहा -आज अल्लाह के आदेश से कोई बचाने वाला नही परन्तु उस को जिस पर वह दया करे। इतने में लहर दोनों के बीच आ गई, और वह भी डूबने वालों में हो गया। और कहा गया- ऐ ज़मीन! अपना पानी निगल जा और आसमान ! थम जा। तो पानी धरती में बैठ गया । और फैसला चुका दिया गया। और वह नाव अल-जूदी पर टिक गई और कह दिया गयाः दूर हों ज़ालिम लोग। और नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा-हे रब! मेरा बेटा मेरे घर वालों में से है! और निश्चय ही तेरा वादा सच्चा है और तू ही सब से बडा हाकिम है। कहा-हे नूह ! वह तेरे घर वालों में से नहीः वह तो अशिष्ट कर्म है, तो तू ऐसी चीज का मुझ से सवाल न कर जिस का तुझे कोई ज्ञान नही है। मैं तुझे नसीहत करता हूं कि तू अज्ञानी लोगों में से न हो जा।
कहा-हे रब ! मै तेरी पनाह मांगता हूं इस से कि मैं तुझ से ऐसी चीज़ का सवाल करूं जिस का मुझे कोई इल्म नही । और यदि तूने मुझे माफ न किया और मुझ पर दया न की तो मैं घाटा उठाने वालों में से हो जाईंगा।
कहा गया - हे नूह ! इस पर्वत से उतर जा इस हाल में कि हमारी ओर से सलामती और बरकतें हैं तुझ पर और उन गिरोहों पर जो उन लोगों में से होंगें जो तेरे साथ हैं और आगे पैदा होने वालों में कितने गिरोह ऐसे हैं जिन्हे हम जीवन सुख प्रदान करेंगे फिर उन्हे हमारी ओर से दुख देने वाली यातना आ पहूंचेगी।

with thanks: Umar saif

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जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्‍य शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है,

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